मैं नूतन हूँ
मेरी पहचान मुझसे है।
गृहिणी हूँ एक सुंदर से,
प्यारे से रिश्तों से बंधे,
पवित्र और शुशील घर की।
मैं कविता हूँ अपने आँगन की
क्योंकि मुझसे ही तो बंधा है
मेरे घर के रिश्तों की डोर।
एक यकीन हूँ प्यार की
एक अहसास हूँ जज्बात की।
मेरे अंदर ही तो है,
समेटने की गहराई ।
क्योंकि समंदर की तरह
सहेज रखा है,
अनगिनत नूतन रिश्तों
नूतन रास्तोंऔर नूतन कृतियों
अंकुरित होने वाले नूतन बदलावों
और नूतन छवियों की
अनमोल और अद्भुत संगम को।
हाँ नूतन हूँ !
क्योंकि पैदा हुई हूँ
कुछ नूतन करने
एक उम्मीद को हवा देने
एक डुबती नाव को पतवार देने
नाम की सार्थकता और औचित्य
नूतन पद से बताने।
नए पल्लवों को नए रंग से
पुरानी धरोहर को
नए सोच से
परंपरा की डोर को
प्यार और उम्मीद से
विश्वास के धागे को
हिम्मत की जंजीर से
बाँधने ही तो निकली हूँ।
क्योंकि नूतन हूँ
नूतन की ये नूतन यात्रा
नूतन आशीष की अभिलाषी है।